Menu
blogid : 23763 postid : 1150378

गिला करता हूँ

Mohan Murli
Mohan Murli
  • 4 Posts
  • 1 Comment

कब मैं अपने जख्मों का सबसे गिला करता हूँ
है खंजरो का डर लोगों के गले मिला करता हूँ,,,

इंसानी बगीचों की रवायते निभाना नहीं आया
बरगदों की तरह दूर जंगलों में खिला करता हूँ,,,

झूमरों की बेलौस रोशनी में दिये पूछता कौन
अँधेरे रस्तो में चिरागो की तरह जला करता हूँ,,,

खूब हँसती है दुनिया जख्मों को देखकर मेरे
अपनी हँसी में दबाकर इनको सिला करता हूँ,,,

कुछ नहीं, मायूसो को मुस्कान देने कोशिश है
दिल से इंसानियत का मजबूत किला करता हूँ,,,

मोहन मुरली

Tags:   

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh